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६] सुवोध जैन पाठम ला--भाग २
प्र० प्रत्याख्यान आवश्यक क्यो है ?
उ० : कुछ काँटे पैर मे घाव करके भीतर के रक्त को इतना विपाक्त कर देते हैं कि उस रक्त को निकालने के साथ घाव पर कुछ लेप की पट्टी भी करना आवश्यक हो जाता है। वैसे ही जानते हए लगे अतिचारो से ज्ञानादि मे घाव पड़ने के साथ रक्त अति विषाक्त बन जाता है। अत उस विषाक्त रक्त को कायोत्सर्ग से निकालने के साथ ज्ञानादि के घावो पर लेप-पट्टो के समान प्रत्याख्यान करना आवश्यक है, जिससे __ ज्ञानादि के कायोत्सर्ग से शुद्ध हुए घाव पूर'जायँ (वन्द हो जायें)।
प्र० आवश्यको का क्रम इस प्रकार क्यो रक्खा गया है ?
उ० सामायिक अर्थात् सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र और तप, ही मोक्ष का मार्ग है, अत वह सबसे मुख्य है-यह बतान के लिए सामायिक को सबसे प्रथम रक्खा गया है।
१ 'मोक्षप्रदायी सामायिक धर्म' को अरिहन्त देव ने प्रकट किया और हमे 'गुरुदेव ने उसे सिखाया । अतः कृतज्ञता की दृष्टि मे 'हम तीर्थकर-रतव और गुस्-वन्दना करे'—यह बताने के लिए क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर चतुर्विंशतिस्तव और वन्दना रक्खी गई है। २ 'हम अपनी सामायिक अाराधना को तीर्थकर स्तव और गुरु-वन्दना करके निर्विघ्न मगलमय वनावे।' इसलिए भी इन्हे दसरा और तीसरा स्थान दिया है। ३ 'पापो का पश्चात्ताप और अतिचारो का प्रतिक्रमण हम अरिहत-साक्षी से और गुरदेव के चरणो मे करे।' इसलिए भी इन्हे दूसरा तीसरा स्थान दिया है। अरिहन्त-साक्षो से हम में पाप-गोपन की भावना दूर होती है और गुरु के चरणो से हम अपने अतिचारो की शुद्धि का मार्ग मिलता है।