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सूत्र-विभाग-३३ 'क्षमापना प्रश्नोत्तरी' [२०५ उ० : क्योकि, प्रत्येक मूल भेद के पाँच वर्ण, दो गध, पाँच रस, आठ स्पर्श और पाँच सस्थान के भेद से नाना उत्तर भेद होते है।
प्र० : १८,२४, १२० प्रकार कैसे बनते है ?
उ० : ससारी जीवो के ५६३ भेदो को क्रमश. १०४ २४३४३४३४६ से गुना करने पर या इनके परस्पर गुणन से होने वाली ३२४० सख्या से गुरगन करने पर बनते हैं। (५०६३४३२४०=१८,२४,१२००)
प्र० इस प्रकार गुणन क्यों किया जाता है ?
उ० : क्योकि, जीवो की विराधना अभिया इत्यादि दस प्रकारो से होती है, राग-द्वेष इन दो कारणो से होती है। तीन करण तीन योग से होती है और भूत, भविष्यत् वर्तमानइन तीन काल मे होती है तथा इनकी विराधना अरिहन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, साधु और आत्मा इन छह की साक्षी से 'मिच्छा मि दुक्कड दिया जाता है।
प्र० : कुलकोटि किसे कहते है ?
उ० : नाना जीव-योनियो मे होने वाले जीवो के कुल (वश) के प्रकारो को।