________________
१५४ ।
सुवोध जैन पाठमाला भाग २
निद्रावस्था के अत्तिचार पगाम-सिज्जाए : मर्यादा (१ से २ प्रहर) उपरति
निद्रा ली हो या गाढी निद्रा ली हो, निगाम-सिज्जाए, : वार-बार मर्यादा उपरात निद्रा ली
हो या लम्बी-चौडी-मोटी मृदु शय्या
की हो,
जागृतावस्था के अतिचार संथारा-उवदृरणाए : शय्या में विना पूजे अयतना से एका
वार या एक पसवाडा उलटा हो,. परियट्टरवाए : वार-वार या दोनो पसवाडे पलटे हों, पाउंटरगाए
: बिना पूजे अयतना से हाथ-पैर आदि पसारणाए
सिकोडे हो या फैलाये हो, छप्पझ्य-संघट्टराए : जू (खटमल, मच्छर अादि) की
विराधना की हो, कुइए
: काया या वाणी से भण्ड कुचेष्टा की
हो, या अयत्ना से खाँसा हो, कवकराइए.
: शय्या सथारे की निन्दा की हो या
अयत्ना से बोला हो, छीए, जंभाइए, : खुले मुह छीक या जभाई ली हो, श्रामोसे
: बिना पूजे खुजाला हो, (सचित्त) ससरक्खामोसे, : रजवाले शय्यादि का स्पर्श किया हो,
अर्धनिद्रावस्था के अतिचार पाउलमाउलाए : परिचारणादि व्याकुलता के . सुवरण-वत्तियाए : दुस्वप्न देखे हो, जैसे