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सूत्र-विभाग- २० पगामसिज्जाए' का पाठ १५३ : मैं सभी सिद्धो की शरण ग्रहण
करता
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• मैं सभी (प्राचार्य उपाध्याय) साघु की शरण ग्रहण करता है।
४ केवलि - पात्तं धम्मं : मैं केवली प्ररूपित (जैन) धर्म की सरर पवज्जामि शरण ग्रहण करता हूँ ।
२. सिद्धे सरपं पवज्जामि
३. साहू सरणं 'पवज्जामि
अरिहन्तों की शरण - सिद्धों को शरण, साधुत्रों की शरण, केवली प्ररूपित दया धर्म की शरण । चार शरण, दुख हररण, श्रौर शरण न कोय | जो भव्य प्राणी प्रादरे, अक्षय - असुर पद होय ॥१५
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पाठ २७ सत्ताईसवाँ
२३. 'पगाम सिज्जाए' शय्या के अतिचारों का प्रतिक्रमण पाठो
इच्छामि पडिकर्मि
: चाहता है, प्रतिक्रमण करना,
ताधारी श्रावक तथा पौषध, संवर या दया करने वाले श्रावकों को रात्रि मे सोकर उठने के पश्चात् शय्या के प्रतिचारों का प्रतिक्रमण करने के लिए 'इच्छाकारेरा' 'तस्स उत्तरी' पढ़कर, १ या ४ 'लोगस्स' का तथा इस 'पमामसिज्जाए' के पाठ का कायोत्सर्ग ध्वश्म करना चाहिए