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सूत्र-विभाग-१. प्रवेश प्रश्नोत्तरी [ ३ मम्यग्ज्ञान आवश्यक है, मार्ग-श्रद्धा-रूप नव तत्वो की सम्यक श्रद्धा आवश्यक है, वन मे भटकना छोडना-रूप चारित्र-आवश्यक है तथा मार्ग मे चलना-रूप सम्यक्तप-यावश्यक है। .
प्रp · चतुर्विंशति-स्तव किसे कहते हैं ?
उ० : जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर स्वामी तक चौबीस तीर्थंकरो का मन से नाम-स्मरण और गुण-स्मरण करना, वचन से नाम स्तुति और गुण-स्तुति करना, काया से नमस्कार करना, उनकी प्रार्थना करना आदि।
प्र० वन्दना किसे कहते है ?
उ० क्षमा आदि गुणो के धारक (महावत समिति गुप्ति आदि के धारक) साधुओ को प्रदक्षिणावर्तन देना,-पचाग वन्दना करना, उनके चरण स्पर्श करना, उनकी चारित्र,सम्बन्धी समाधि तथा शरीर, इन्द्रिय, मन-सम्बन्धी सुख-शाता -पूछना, उनकी की गई आशातना का पश्चात्ताप करना आदि।
प्र० चतुर्विशतिस्तव और वन्दना आवश्यक क्यो है ?
उ० . जैसे जो पुरुष पहले वन मे भटक रहा था, उसे आवश्यक है कि-'वह नगर का मार्ग बतलाने वाले पुरुष के उपकार को मानकर उसको स्तुति आदि करे, वन्दना आदि करे।' इसी प्रकार जब हम ससार-वन मे भटक रहे थे, हमे मोक्ष-नगर के अस्तित्व का भी ज्ञान नही था, तब देव गुरु ने हमे शब्द सुना कर मोक्ष-नगर ' का मार्ग बताया और मोक्ष-मार्ग पर चढाया। अतः हमे भी आवश्यक है हम देव गुरु की स्तुति प्रादि करे तथा उनको वन्दना.अादि करे।