SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ प्र० : 'सचित्त निक्खेवण्या और पिहणया' से और क्या समझना चाहिए ? उ० · साधु दान के योग्य पदार्थों को जहाँ पर, जिस स्थिति में रखने से साधु उन्हे न ले सके, ऐसे स्थान और स्थिति मे रखना। जैसे अचित्त अशनादि को सचित्त पदार्थों से छूयाकर या सचित्त पदार्थों में मिलाकर रखना, नाले मे या ऊँचे पाले मे रखना आदि। प्र० : कालाइक्कमे मे और क्या सम्मिलित हैं ? उ० · भोजन के समय द्वार बन्द रखना, स्वय घर के बाहर रहना, रात्रि के समय दान की भावना भाना, साधुओ को सडी हुई वस्तुएँ देना आदि। , प्र० 'परोवएसे' मे और क्या सम्मिलित है ? उ० : अपनी वस्तु पराई बताना, कोई दान का उपदेश दे, तो उसे कहना-आप ही दीजिए-इत्यादि । प्र० · मत्सरदान किसे कहते है ? उ० · अपने से अधिक दानी के प्रति जलते हुए दान देना, विशिष्ट दानी कहलाने के लिए दान देना, दान देकर पछताना आदि को। 'अतिथि संविभाग वत' निबंध १. सूक्त : वेश और गुणयुक्त साधु-श्रावक को दान देने वाला उन्हें समाधि उत्पन्न करता है, फलस्वरूप वह भी भविष्य मे समाधि प्राप्त करता है-भग०। २ वेश और गुणयुक्त साधु-श्रावक को दान देने वाला सम्यक्त्व प्राप्त करता है, यावत् सब दुःखो का
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy