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११० ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २ समिति पालना। पौषध मे उभयकाल प्रतिलेखन करना। दिशावकाशि के व्रत मे दिन-रात्रि तक अपने परिमाण का ध्यान रखना। विशेष इच्छा या आवश्यकता होने पर आत्मा पर अकुश लगाना।
६. भावना : सूक्तादि पर विचार करना। 'धन्य हैं, वे मुनि जी यावज्जीवन १ सामायिक २ पौपध ग्रहण किये हुए है और ३. धर्म के लिए आवश्यक उपकरण और भोजन-पान के अतिरिक्त सब त्यागे हुए है। मैं ऐसा कब बनूगा ?' यह मनोरथ करना । अपूर्णता का खेद करना। सामायिक पौषध आदि को दृढता से पालने वाले कामदेव, शख, कुण्डकोलिक आदि के चरित्रो पर ध्यान लगाना।
पाठ १६ उन्नीसवाँ
२७. 'अतिथि-संविभाग प्रत' व्रत पाठ
संविभाग
अतिथि (जिनके आने की तिथि नियत नही) : उन्हे विधि से प्रशन आदि का कुछ . भाग देना : रूप व्रत : श्रमण (मोक्षानुकूल तप-श्रम करने
व्रत।' समणे
वाले)