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________________ ११२] सुवोध जैन पाठमाला - भाग २ प्रतिचार पाठ ऐसे बारहवें अतिथि संविभाग व्रत के पंच अइयारा जारिणयव्वा न समायरियव्वा तेजहाते प्रालोउं - १. सचित्त निक्खेवया २. सचित्त-पिहरणया ३. काल इक्कमे ४. परोवएसे ५. मच्छरियाए जो मे देवसिश्रो महपारो को बारहवें अतिथि सविभाग व्रत के विषय मे जो कोई प्रतिचार लगा हो, तो प्रलोउ - : श्रचित्त (अशनादि ) वस्तु, सचित्त ( जलादि) पर रक्खी हो, : अचित्त वस्तु सचित से ढंकी हो, : साधुओ को भिक्षा देने का समय टाल दिया हो, : श्राप सूझता (शुद्ध) होते हुए भी दूसरो से दान दिलाया हो, : मत्सर ( इर्ष्या) भाव से दान दिया हो : इन प्रतिचारो से मुझे जो कोई दिन संबंधी प्रतिचार लगा हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कड । प्रश्नोत्तरी प्रo : क्या साधु-साध्वियाँ ही दान के पात्र है " उ० : 'साधु-साध्वियाँ दान के उत्कृष्ट (उत्तम) पात्र है ।' प्रतः उनको बारहवे व्रत मे उल्लेख किया है । परन्तु उस 'उल्लेख' से 'प्रतिमाधारी श्रावक, व्रतधारी श्रावक और सामान्य स्वधर्मी सम्यक्त्व भी दान के पात्र है।' यह समझना चाहिए । प्रतिमावारी श्रावक दान के उत्तम पात्र की गणना मे आती
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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