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सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
प्रतिचार पाठ
ऐसे बारहवें अतिथि संविभाग
व्रत के पंच अइयारा जारिणयव्वा न समायरियव्वा तेजहाते प्रालोउं -
१. सचित्त
निक्खेवया २. सचित्त-पिहरणया ३. काल इक्कमे
४. परोवएसे
५. मच्छरियाए जो मे देवसिश्रो
महपारो को
बारहवें अतिथि सविभाग व्रत के विषय मे जो कोई प्रतिचार लगा हो, तो प्रलोउ -
: श्रचित्त (अशनादि ) वस्तु, सचित्त ( जलादि) पर रक्खी हो,
: अचित्त वस्तु सचित से ढंकी हो, : साधुओ को भिक्षा देने का समय टाल दिया हो,
: श्राप सूझता (शुद्ध) होते हुए भी दूसरो से दान दिलाया हो,
: मत्सर ( इर्ष्या) भाव से दान दिया हो : इन प्रतिचारो से मुझे जो कोई दिन संबंधी प्रतिचार लगा हो, तो
तस्स मिच्छामि दुक्कड ।
प्रश्नोत्तरी
प्रo : क्या साधु-साध्वियाँ ही दान के पात्र है
"
उ० : 'साधु-साध्वियाँ दान के उत्कृष्ट (उत्तम) पात्र है ।' प्रतः उनको बारहवे व्रत मे उल्लेख किया है । परन्तु उस 'उल्लेख' से 'प्रतिमाधारी श्रावक, व्रतधारी श्रावक और सामान्य स्वधर्मी सम्यक्त्व भी दान के पात्र है।' यह समझना चाहिए । प्रतिमावारी श्रावक दान के उत्तम पात्र की गणना मे आती