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२. तत्व विभाग में पाँच समिति तोन गुप्ति का स्तोक सार्थ कंठस्थ कराना व समझाना चाहिए। ३. कथा विभाग मे धर्म रुचि अनगार आदि शेष छ. कथाएँ पढानो चाहिए तथा ४. काव्य विभाग में महावीर गुण कोर्तन, सम्यग्दष्ट पाऊं. मानव भव का स्वागत फँसना मत देवाणुप्पिया ! आवश्यक कोजिए और दश श्रावको की स्तुति-ये छह काव्य समझाना व कठस्थ कराना चाहिए।
स्व० शतावधानी श्री केवल मुनिजी म० का शिष्य
पारस मुनि
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