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विरूद्ध यदि कोई वचन लिखने में आया हो, तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं |
विद्वान समालोचकों से प्रार्थना है कि वे इसमें रही त्रुटि और स्खलनाओं के प्रति मेरा व प्रकाशक का ध्यान आकर्षित करें, जिससे इसमें भविष्य में परिमार्जन हो सके । इति शुभम् ॥
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शिक्षकों से :
इस पुस्तक में प्रतिक्रमण में श्रमण सूत्र भी दिया है । जिनके माता-पिता, गुरुदेव आदि बालको को 'श्रमण-सूत्र' पढाना आवश्यक समझते हों या बालक स्वयं श्रमण सूत्र' को आवश्यक समझ कर पढना चाहते हों, उन बालको को 'श्रमण सूत्र' पढाया जाय। जिनके माता पिता गुरुदेव आदि बालको को 'श्रमण सूत्र' पढाना आवश्यक नहीं समझते हो या बालक पढ़ना नहीं चाहते हो, उनके लिए श्रमण सूत्र पढना अनिवार्य नहीं रक्खा जाय ।
छोटे बालको को यह पुस्तक दो वर्ष में पढाना चाहिए। प्रथम वर्ष में १. सूत्र विभाग में 'आवश्यक (प्रतिक्रमण) सूत्र का मूल और अर्थ समझाना व कटस्थ कराना चाहिए। २. तत्व विभाग में 'पच्चास बोल' के शेष बोल सार्थ और तीर्थंकर गोत्र उपार्जन के २० बोल समझाना व कंठस्थ कराना चाहिए । ३. कथा - विभाग में भगवान् महावीर के २७ भव र भगवान् श्ररिष्टनेमि ३ सतो राजीमती और 8 अनाथी अणगार - ये चार कथाएँ पढानी चाहिए तथा ४. काव्य विभाग में तीन मनोरथ, तीन तत्व, निर्माण मार्ग, पाक्षिक चौवोसो, क्षमापना और जैनिस्तान को झाँकी - ये छह काव्य समझाना व कठस्थ कराना चाहिए ।
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तथा दूसरे वर्ष मे १ सूत्र विभाग मे प्रतिक्रमण के प्रश्नोत्तर और निबंध समझाना और धारण करना चाहिए ।
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