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सुबोध जैन पाठमाला--भाग २
८. रस-वाणिज्जे : रस का वाणिज्य किया हो, है. विस-वाणिज्जे : विप आदि का वाणिज्य किया १०. केस-वाणिज्जे : केश वालो का वाणिज्य किया ११. जेत-पीलग-कम्में : यन्त्रो का काम किया हो, १२. निल्लछरग-कम्मे : नपुसक बनाने का काम किया है १३. दवग्गि-दावरगया : खेतादि मे आग लगाई हो, १४. सर-दह-तलाय- सरोवर, द्रह, तालाब आदि सुख
सोसरगया १५. असई-जरण : वेश्या आदि का पोपण किया है योसरगया 'जों में देवसियो : इन अतिचारों में से मुझे जो अइयारो को "दिन सम्बन्धी अतिचार लगा हो
तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।
: हो,
'उपभोग-परिमोग व्रत प्रश्नोत्तरी
प्र० • जब सचित्त को पका कर खाने में सचित्त हिंसा तो होती ही हैं, पकाने से अग्नि और उससे त्रस उ की भी हिंसा होती है, तब सचित्त को बिना पकाये सीधा न खाया जाय, पका कर क्यो खाया जाय ?
उछ 'सचित्त पकाने के लिए सूत्रकार आदेश नहीं दें यह पहले ध्यान मे ले लेना उचित्त है। अब उत्तर यह है १ पका कर खाने में हिंसा, जीवो की गणना की अपेक्षा आ होती है, किन्तु सचित्त को सीधे मुंह मे डाल कर खाने मे : की दृष्टि से हिंसा अधिक होती है, क्योकि सीधे सचित्त को मुंह खाने मे दया का भाव मन्द माना गया है। २. दूसरी बात है कि सचित्त को अचित्त बनाकर उपभोम मे लेने के लिए,