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५६ ] जैन सुबोध पाठमाला--भाग १ तटस्थ : (टोंकते हए कडे स्वर मे) उपकार तुम्हे इस
प्रकार नये अध्यापकजी को उत्तर नहीं देना चाहिए। यह अनुशासन का भग है। परन्तु अव पाठशाला का इतना समय नही रहा कि सामायिक पा सके, अत. अध्यापकजी का सामायिक के लिए कहना भी अविवेक है।
अध्या० : तटस्थकुमार | यदि कभी सामायिक जितना समय
नही रह जाता, तो थोडे समय का 'सवर' (अट्ठारह पाप का एक करण, एक योग से त्याग) किया जा सकता है। समय को जितना भी हो, सार्थक बनाना चाहिए। फिर आज लोक (व्यावहारिक) पाठशाला की छुट्टी है। यहाँ का समय पूरा होने पर तुम्हे जाना कहाँ है ? आज एक के स्थान पर तीन सामायिके कर सकते हो। आज विलम्ब से पहुँचे-इसके पश्चाताप के रूप मे भी तुम्हे छुट्टी के दिन एक सामायिक विशेप करनी चाहिए। खेलो से भी आत्मा के कल्याण के लिए अधिक रुचि रखनी चाहिए। तुम्हे यह बात भी ध्यान मे रखनी चाहिए कि वडो की भूल हो, तो भी उसे अविनय के साथ मत कहो, किन्तु उन्हे विनय से निवेदन करो। यह भी हो । सकता है कि उनकी उचित शिक्षा तुम्हे तुम्हारी अल्प बुद्धि के कारण समझ मे न आवे, अत बड़ो की बात अविवेकपूर्ण है-ऐसा शीघ्र निर्णय करना ठीक नही है।