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उ० . प्रत्येक व्रत को प्रत्याख्यानपूर्वक लेने से १. किये जाने वाले व्रत का नाम स्पष्ट होता है । २. उसका स्वरूप समझ मे आता है । ३-४ व्रत के क्षेत्र और काल की मर्यादा निश्चित होती है । ५. व्रत के पालन को कोटि (विधि) का ज्ञान होना है । ६ प्रत्याख्यान में पूर्व के पापो की निन्दा, गर्हा आदि की जाती है, जिससे प्रत्याख्यान- पालन मे दृढता आती है, इत्यादि, प्रत्याख्यानपूर्वक व्रत लेने मे कई लाभ हैं ।
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जैन सुवोध पाठमाला - भाग १
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सामायिक करने मे ग्राज्ञा ग्रावश्यक क्यो है ? प्रत्येक व्रतादि कार्य मे प्राज्ञा लेने से १. अनुशासन का पालन होता है । २ आत्मा मे विनय गुण बढता है । ३ गुरुदेव को हमारी पात्रता का ज्ञान होता है । ४ 'मैं सब कुछ कर सकता हूँ' - ऐसा अहकार उत्पन्न नही होता । ५. गुरुदेव अवसर आदि के जानकार होते है, वे इस समय यह करना या अन्य कार्य करना - इसका विवेक करा सकते हैं । इत्यादि, श्राज्ञा लेने मे कई लाभ हैं ?
गुरु महाराज के न होने पर सामायिक की आज्ञा किन से ली जाय
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यदि साधु, साध्वी का योग न हो, तो जानकार या बडे श्रावक, श्राविका की प्राज्ञा लेनी चाहिए। किसी का भी योग न होने पर उत्तर दिशा, पूर्व दिशा या ईशान कोण मे वन्दना-विधि करके भगवान् महावीर स्वामीजी से प्राज्ञा लेनी चाहिए
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क्या सामायिक लेने के लिए केवल यह प्रत्याख्यान का पाठ पढना पडता है ?