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___३४ ] जन मुबोध पाठमाला-भाग १
प्र० सामायिक किसे कहते हैं ? उ० जिसके द्वारा समभाव की प्राप्ति हो-ऐसी क्रिया को तथा
समभाव की प्राप्ति को सामायिक कहते है । प्र० : समभाव की प्राप्ति कैसे होती है ? उ० . विषम भाव को छोड़ने से । प्र० । विषम भाव किसे कहते हैं ? उ० · सावध योग को। प्र० सावध योग किसे कहते है ? उ० अट्ठारह पाप तथा अट्ठारह पाप के व्यापार को। प्र० : अट्ठारह पाप विपम भाव क्यो है ? उ० : १ यात्मा के स्वभाव को समभाव कहते हैं तथा
२. पात्मा का स्वभाव जिससे प्राप्त हो, उसे भी 'समभाव' कहते है। १ जिससे आत्मा का स्वभाव ढंके तथा २. जिससे समभाव की प्राप्ति मे विघ्न हो, उसे 'विपमभाव कहते है । १ सभी प्रात्माएँ सिद्ध के समान हैं। इसलिए जो सिद्धो का स्वभाव है, वही आत्मा का स्वभाव है। परन्तु हिंसा आदि करना, क्रोधादि करना, क्लेशादि करना कुदेवादि पर श्रद्धा करना प्रात्मा का स्वभाव नही है। इन अट्ठारह पापो ने आत्मा के स्वभाव को ढंका है इसलिए अट्ठारह पाप विपमभाव है। २ यात्मा के स्वभाव को पाने का अर्थात् सिद्ध वनने का उपाय है धर्म। पाप से धर्म मे विघ्न पडता है और धर्म मे विघ्न पड़ने पर मोक्ष-प्राप्ति मे विघ्न पड़ता है। इसलिए अट्ठारह पाप 'विपमभाव' हैं।