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पाठ ६--साधु-दर्शन [ २६ तुम्हे कितना सुन्दर समझाया। ऐसे पुरुषो से प्रश्न पूछने मे कभी सकोच नहीं करना चाहिए। उन्हे प्रश्न पूछने से वे अधिक प्रसन्न होते हैं। इसके अतिरिक्त वे जितना सुन्दर समाधान (उत्तर) दे सकते है, उतना हम लोग उत्तर नही दे सकते। अत उनकी कृपा पाने के लिए तथा अपनी विशेष ज्ञानवृद्धि के लिए उन से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। हाँ, तो लो, अब 'दया पालो' का अर्थ, जैसा मुझे पाता है, वैसा बताता हूँ। 'दया' का अर्थ है 'अहिंसा' और 'पालो' का अर्थ है 'पालन करो'। अहिंसा हमारे सम्पूर्ण शास्त्रो का सार है। जब हम गुरुदेव को वन्दना करते हुए कहते हैं कि 'मैं आपकी पर्युपासना करता हूँ, अर्थात् कुछ सुनना चाहता हूँ', तो वे हमे थोडे मे जो सम्पूर्ण शास्त्रो का सार अहिंसा है, उसे पालन करने की शिक्षा
देते हैं।
दया : मुनिराज हमे 'दया पालो' ही क्यो कहते हैं ? पिता : जब थोड़े शब्दो मे किसी को उपदेश देना हो, तो उसे
सारभूत शिक्षा ही देनी चाहिए। मंगल : बहुत अच्छा पिताजी ! अब आप आचार्यश्री ने हमे
अन्त मे जो पाठ सुनाया, उसका नाम बताइये और
वह पाठ सिखाइये। पिता : मगल । तुमने आचार्यश्री से सीखने में सकोच किया,
यह अच्छा नहीं किया। भविष्य मे कभी उनकी सेवा मे सकोच-लज्जा मत रखना। हाँ, उन्होने जो पाठ