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पाठ ७-तीर्थकर और तीर्थ
पाठ ७ सातवाँ
तीर्थकर और तीर्थ
जिनदास एक भला शिक्षार्थी था। उसकी स्मरण शक्ति तेज थी। वह कक्षा मे छात्रो से व्यर्थ बातचीत नही करता था । शिक्षक जो सिखाते, उसे वह ध्यान से सुनता और मन लगाकर कठस्थ करता।
वह जैन पाठशाला से घर लौटा। उसकी माँ उसे बहुत चाहती थी, क्योकि उसमे शिक्षार्थी के गुण थे। माता ने उसे दूध पिलाने के पश्चात् पूछा .
वेटा, जिनदास ! कहो, आज क्या सीखे ? पुत्र आज मैं कई नई बाते सीख कर आया हूँ। आज
श्रावकजी ने पहले हमे अरिहन्तदेव का एक नया नाम
वताया-'तीर्थंकर' । माँ : वेटा! तीर्थंकर किसे कहते है ? सुत्र : माँ! जो तिराता है, उसे तीर्थ कहते हैं।
अरिहतो के प्रवचन (धर्म, उपदेश) हमे ससार से तिराते हैं, अत. अरिहतो के प्रवचन को तीर्थ कहते हैं। अरिहत प्रवचन रूप तीर्थ को प्रकट करते है,
इसलिए अरिहंतो को तीर्थंकर कहा जाता है। : बेटा। जानते हो, कितने तीर्थंकर हुए? : हाँ, भूतकाल मे अनंत तीर्थंकर हो चुके है, किन्तु इस अवसर्पिणी काल मे चौबीस तीर्थकर हुए। उनके नाम इस प्रकार हैं: