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पाठ ६-~-जैन धर्म
[ १५ प्र० . तप किसे कहते हैं ? उ०. उपवास आदि करके काया आदि को तपाना तथा
प्रायश्चित आदि करके मन आदि को तपाना। प्र० • जैन कितने प्रकार के होते है ? उ० . तीन प्रकार के होते हैं। १. श्रद्धा रखने वाले, २ श्रद्धा
के साथ थोडा चारित्र (अणुव्रतादि) पालने वाले, ३. श्रद्धा
के साथ पूरा चारित्र (पाँचो महाव्रत) पालने वाले। प्र०: इनके नाम क्या हैं ? उ०. पहले और दूसरे प्रकार के जैन, श्रावक और श्राविका
कहलाते हैं। तीसरे प्रकार के जैन, साधु और साध्वी
कहलाते हैं। प्र०. तो क्या हम भी श्रावक हैं ? उ० : हाँ। प्र०. श्रावक, श्राविका और साधु, साध्वी आपस मे क्या
लगते है ? उ० : स्वधर्मी। प्र० : स्वधर्मी किसे कहते हैं ? उ० . जो हमारे जैन धर्म पर श्रद्धा रखता हो, जैन धर्म का
पालन करता हो। प्र० . जैन धर्म से इस लोक मे क्या लाभ हैं ? उ० : १ ज्ञान से हमारी बुद्धि विकसित होती है। २. श्रद्धा
से हम पर असत्य का चक्र नहीं चलता। ३ अहिंसा से वर-विरोध शात होता है, मंत्री बढती है, समय पर रक्षक मिलते हैं। सत्य से विश्वास बढ़ता है, प्रामाणिकता बढतो है। अचौर्य और ब्रह्मचर्य से सब स्थानो मे