________________
__ काव्य-विभाग-स्थानकजी मे जाएँ । २८१ रहो परस्पर हिलमिल जुलकर, कलक निन्दा चुगली तजकर ।
करो सघ जयकार ॥१२॥ जैनो सब.... जो जिन धर्म लजावे कोई, उनको साथ न देना कोई ।
कर दो बहिष्कार ॥१३॥ जैनो सब ... सात व्यसन को दूर निवारो, बारह श्रावक व्रत स्वीकारो।
__ लो इक्कीस गुण धार ॥१४॥ जैनो सब .. जोवन जोयो ऐसा सुन्दर, लगे सभी को प्यारा सुखकर ।
'पारस' करे पुकार ।।१५।। जैनो सब
स्थानकजी में जाएँ
[ तर्ज • सुबह और शाम की ] बहिन . प्रायो, भया । प्राओ देरी न लगायो,
__स्थानकजी मे जाएँ ।टे। भाई . प्रायो, बहिन । आओ, देरी न लगायो,
स्थानकजी मे जाएँ ।टेर। व० मुनिराजो के होगे दर्शन, मगलिक हमे सुनाएँगे। कुछ-कुछ ज्ञान नया सीखेंगे, पच्चखागो को धारेंगे।
उत्तरासग ले आओ, या मुंहपत्ति ले आयो । स्थानकजी । भा० विनय बढेगा मन वच तन मे, श्रद्धा दृढ हो जाएगी।
आँख ज्ञान की खुल जाएगो, पाप क्रिया छूट जाएगी।
आसन लेकर आओ, पूंजणी लेकर आओ । स्थानकजी १२। व० मिलेगे ज्ञानी श्रावकजी भी, सामायिक सिखलायेंगे।
प्रतिक्रमण पच्चीस बोल, नवतत्वादिक रटवायेगे । माला लेकर आओ, पोथो लेकर प्रायो । स्थानकजी ।।