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जैन सुबोध पाठमाला
मस्तक चरणो मे धरते, दोनो हाथो से छूते ।
मे
॥२॥
कष्ट हुआ हो क्षमा करो ।। चरण कमल ग्रहो रात्र क्या शुभ वीता ? सयम मे न रही सुख शांता का उत्तर दो || चरण कमल जो अपराध हुए हमसे दूर हरे मनव च निष्फल ग्राशातना करो || चरण कमल
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- भाग १
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वाघा
मे .. 11311
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तन से |
मे ॥४॥
७ वीर व उनके शिष्यों की स्मृति
.. [ तर्ज कभी सुख हैं कभी दुख है ]
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घिरे
मन बच तन के योग बुरे, हम कषाय से झूठ दिखावा मिथ्या हो ॥ चरण कमल हम हैं भूलो के सागर पर हैं ग्राप क्षमासागर | "पारस" का उद्धार करो || चरण
हुए । मे ॥५॥
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कमल मे ||६|| - 'इच्छामि खमासमरणों' के भावों पर ।
साधु
जिनेश्वर वीर और उनके, शिप्य ग्रव याद आते हैं । - हरप करते भजन गाते, वडो को सर झुकाते है ||र || जिनेश्वर उसा कौशिक अंगूठे मे, वहाई दूध की धारा । क्षमा का वोध दे तारा, प्रभु वे याद आते है ||१|| : गये ग्रानन्द श्रावक घर, भूल तत्क्षण क्षमाने को । जो चौदह-पूर्वी होकर भी, वे 'गौतम' याद आते है ||२|| साध्वी • पिता बिछुडे मिधाई माँ विको श्रीर भोयरे डाली । न फिर भी धैर्य त्यागा, वे 'चन्दना' याद ग्राती हैं ||३|| श्रावक : देव मिथ्यात्वधारी के, कठिन परिषह सहे तीनो । तथापि व्रत न खाखा, वे 'कामदेव' याद आते है ॥४ ॥