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कथा-विभाग-६ छोटी बहू रोहिणी [ २६७ और उसे पाँच शालि अक्षत (चावल के बीज) देते हुए कहा'पुत्री ! मेरे हाथ से इन पाँचो चावल के बीजो को लो और इनका सरक्षण करते हुए (हानि से बचाते हुए) तथा सगोपन करते हुए (हानि न हो, ऐसे गुप्त स्थान में रखते हुए) इन्हे अपने पास रक्खो।' यह कहकर धन्ना ने उसके हाथो मे वे पांचो बीज दे दिये और उसे स्वस्थान पर भेज दिया।
उज्झिता ने उन बीजो को एकात मे ले जाकर सोचा'मेरे ससुर के बहुत-से कोठार, शालि (चावलो के बीजो) से ही भरे पडे है। जब ससुरजी पाँच शालि मागेंगे, तब मैं उन कोठारो मे से पाँच शालि ले जाकर उन्हे दे दूंगी। इन शालियो का सरक्षण-सगोपन करना वृथा है।' यह सोचकर उसने वे बीज एक ओर फेक दिये और अपने काम मे लग गयी। उसका जैसा नाम था, वैसा हो उसने काम किया।
धन्य ने २ दूसरी बहू भोगवती को भी बुलाकर पाँच शालि दिये। उसने भी एकात मे जाकर बडी बहू के समान सोचा। पर उसने बाज फेंके नही, किन्तु उनके छिलके उतार कर उन्हे खा लिए। उसने भी अपने नाम के अर्थ के अनुसार काम किया।
धन्य ने ३ तीसरी बहू रक्षिता को भी बुलाकर पाँच शालि दिये। उसने एकात मे जाकर सोचा-'ससुरजी ने आज परिवार, जाति, मित्र, पीहर वाले आदि सबके सामने ये शालि के बीज दिये हैं, इसलिए अवश्य ही इसमे कोई कारण होना चाहिए।' यह विचार कर उसने एक नये स्वच्छ वस्त्र मे उन्हे बाँधा और अपने आभूषण। की पेटी मे रख दिया । और नित्य १. प्रात , २ मध्याह्न और ३ संध्या तीनो समय उनको