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________________ कथा - विभाग - ७ श्री सुबाहु कुमार (मुनि) [ २६५ सथारापूर्वक काल करके वे पहले देवलोक मे गये । वहाँ से वे १४ भव तक क्रमश मनुष्य श्रौर देव बनते हुए १५ पन्द्रहवें भव मे मनुष्य बनकर तथा दीक्षा लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे । ॥ इति ८. श्री सुबाहु कुमार ( मुनि) की कथा समाप्त ॥ - श्री सुखविपाक सूत्र, अध्ययन १ के प्राधार से शिक्षाएँ १ पात्र का योग मिलने पर भावपूर्वक अपने हाथो से निर्दोष दान दो । २. सुपात्र दान से ससार घटता है ( मुक्ति निकट बनती है) । किये रहती है । ४. सुपात्र दानी को लौकिक सुख भी मिलता है 1 ५ सुपात्र दानी लोगो का व साधुओ का भी प्रिय बनता है । हुए • ? ३ सुपात्र दान से आत्मा की क्रमश उन्नति होती प्रश्न १. भगवान् ने धर्म-कथा में कितनी मुख्य बातें बतलाई ? २ श्री गौतमस्वामी ने सुबाहु के सम्बन्ध मे क्या क्या प्रश्न ३. सुपात्र दान देने श्रादि की विधि बताश्रो । ४. सुमुख गृहस्थ के सुपात्र दान से क्रमशः क्या-क्या फल ५. सुबाहुकुमार से आपको क्या शिक्षाएँ मिलती है ?
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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