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कथा - विभाग - ७ श्री सुबाहु कुमार (मुनि)
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सथारापूर्वक काल करके वे पहले देवलोक मे गये । वहाँ से वे १४ भव तक क्रमश मनुष्य श्रौर देव बनते हुए १५ पन्द्रहवें भव मे मनुष्य बनकर तथा दीक्षा लेकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होंगे ।
॥ इति ८. श्री सुबाहु कुमार ( मुनि) की कथा समाप्त ॥
- श्री सुखविपाक सूत्र, अध्ययन १ के प्राधार से
शिक्षाएँ
१ पात्र का योग मिलने पर भावपूर्वक अपने हाथो से निर्दोष दान दो ।
२. सुपात्र दान से ससार घटता है ( मुक्ति निकट बनती है) ।
किये
रहती है ।
४. सुपात्र दानी को लौकिक सुख भी मिलता है 1 ५ सुपात्र दानी लोगो का व साधुओ का भी प्रिय बनता है ।
हुए
•
?
३ सुपात्र दान से आत्मा की क्रमश उन्नति होती
प्रश्न
१. भगवान् ने धर्म-कथा में कितनी मुख्य बातें बतलाई ?
२ श्री गौतमस्वामी ने सुबाहु के सम्बन्ध मे क्या क्या प्रश्न
३. सुपात्र दान देने श्रादि की विधि बताश्रो ।
४. सुमुख गृहस्थ के सुपात्र दान से क्रमशः क्या-क्या फल
५. सुबाहुकुमार से आपको क्या शिक्षाएँ मिलती है ?