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२४४ ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १ सागारी सथारा (अनशन) ग्रहण कर लिया और चुपचाप धर्मध्यान करते रहे। ऐसा देख कर उस देव ने कामदेव को अपनी उपर्युक्त बात दूसरी और तीसरी बार भी कही, परन्तु कामदेव के तन-मन मे कोई अन्तर नही आया । तब देव ने ऋद्ध होकर, भौहे बढाकर सचमुच ही खड्ग से कामदेव के खण्ड-खण्ड कर दिये। उससे कामदेव को बहुत कष्ट पहुँचा। सुख का लेश भी नहीं रहा। ऐसी उस वेदना को सहन करना बहुत कठिन था, फिर भी कामदेव बहुत ही शान्ति से उस वेदना को सहन करते रहे।
हाथी का दूसरा उपसर्ग यह देखकर उस देव को कुछ निराशा हुई। वह पौषधशाला से बाहर निकला। इस दूसरी बार मे उसने अपना पर्वत-सा लम्बा-चौडा, तीखे-तीखे दाँत वाला, लम्बी-सी संडवाला, मेघ-सा काला और मदमाते भयकर हाथी का रूप बनाया तथा पौपधशाला में प्राकर कहा-'अरे । कामदेव ! मृत्यु के चाहने वाले !-इत्यादि । यदि तू धर्म से नहीं डिगता, व्रतों को नहीं छोडता, तो मैं अभी तुके सूंड से पकडकर पौषधशाला से बाहर ले जाऊँगा। वहाँ तुझे आकाश में उछाल कर फिर तीखे दाँतो पर झेलूंगा। फिर भूमि पर डालकर पैरो तले तीन बार रोदूंगा। जिससे तू अकाल मे ही बहुत दुख पाता हुआ मर जायगा।'
कामदेव, हाथी के इन वचनो को सुनकर भी न डरे, वरन् पहले के समान ही निर्भय निश्चल चुपचाप धर्म-ध्यान करते रहे। यह देखकर उस हाथीरूप-धारी देव ने कामदेव को अपनी उपर्युक्त वात दूसरी और तीसरी बार भी कही। परन्तु कामदेव के तन-मन मे कोई अन्तर नही आया । तब देव ने क्रूद्ध