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२४२ ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १ कामदेव के अनुकूल थे। कामदेव के पास १८ करोड म्वर्णमद्रायो का धन था। उनमे से छह करोड कोष मे, ६ करोड वृद्धि (व्याज, व्यापार) मे तथा छह करोड स्वर्ण-मुद्राएँ घरविस्तार मे लगी थी। कामदेव के छह गोकुल थे। प्रति गोकुल मे १०,००० दस सहस्र पशु थे।
इस प्रकार कामदेव गृहस्थ परिवार, सपत्ति, सुख, प्रतिष्ठा, मान्यता आदि सबसे सपन्न थे।
धर्म-ग्रहरण एक वार भगवान् महावीरस्वामी उस नगरी के बाहर पूर्णभद्र नामक चैत्य (व्यन्तरायतन) मे पधारे । ये समाचार पाकर कामदेव गृहस्थ भगवान् के दर्शन करने तथा बाणी सुनने गये। भगवान् की वाणी सुनकर उनकी जैन धर्म पर श्रद्धा हुई। उन्हे लगा कि 'परिवार, धन, प्रतिटा आदि की यह मेरी सारी सम्पन्नता वास्तविक सुखदायी नही है, न यह परभव मे साथ ही चलेगी। विश्व मे प्राणी के लिए केवल एक धर्म ही सच्चा सुखदायो है और भव-भव का साथी है । इसलिए मुझे संसार त्याग करके दीक्षा ग्रहण करना उचित है। पर अभी मुझ मे वैसी तीव्र भावना नहीं है, अत. दोक्षा नही तो मुझे श्रावक-व्रत तो ग्रहण करना ही चाहिए।' यह सोच कर उन्होने भगवान् से सम्यक्त्व और श्रावक के १२ व्रत अगीकार किये। पीछे नवतत्व की जानकारी आदि करके वे २१ गुण-सम्पन्न श्रेष्ठ श्रावक बन गये। यहाँ तक कि 'भगवान् के श्रावको मे वे नामाकित मुख्य श्रावको में गिने जाने लगे।'
चौदह वर्ष तक उन्होने गृहस्थ व्यवहार चलाते हुए श्रावकत्व का पालन किया। फिर उन्हें लगा कि 'गृहस्थी के