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________________ कथा-विभाग-४ श्री मेघ-कुमार (मुनि) [ २२७ भगवान की मेघकुमार को शिक्षा इस प्रकार मेधकुमार के दोनो पूर्व जन्मो की घटनाग्रो सुना कर भगवान् उन्हे शिक्षा देने लगे-'मेघ । पूर्व जन्म मे तुम पशु थे। उस समय तुम्हे सम्यक्त्व (धर्म-श्रद्धा) नई-नई ही पायी थी। उस पशु और नई श्रद्धा की अवस्था मे भी तुमने उस शश की रक्षा के लिए अढाई रात-दिन तक अपने एक पैर को उठाये का उठाये रक्खा और महान् कष्ट सहा । पर १ प्राज तुम पशु नही, ऊँचे राजघराने मे जन्मे हए मनुष्य हो। २ तुम्हारे मे नई धर्म-श्रद्धा नहीं है, परन्तु पुरानी श्रद्धा के साथ जान-वैराग्ययुक्त दीक्षा-अवस्था भी है। फिर भी तुम साधुनो के द्वारा सावधानी रखते हुए भी पहुँचे हुए कष्ट को सहन न कर सके ? ३. कहाँ तो उस दशा मे तुमने अपनी ओर से पशु के लिए महान् कष्ट सहा, कहाँ आज साधुओ की ओर से आये सामान्य कष्ट न सह सके ? फिर ४. पूर्व जन्म मे तुमने कहाँ तो अढाई रात दित तक कष्ट सहा और कहाँ इस समय तुम एक रात्रि मे ही अन्य विचार कर बैठे ? सोचो, मेघ | आज तुम्हारे मे कितने उच्च विचार होने चाहिएँ ? कितनी अधिक कष्ट-सहिष्णुता होनी चाहिए ?' __मेघकुमार मुनि को अपना पूर्व भव सुनकर जाति-स्मरणजान द्वारा अपना पूर्व भव स्मरण मे पा गया। भगवान् की अत्यन्त मधुर और कुशलतापूर्वक ज्ञान-वैराग्य की ज्योति को, पुन दुगुनी चमकाने वाली शिक्षा को सोचते-सोचते मेघकुमार मुनि की आँखो मे भगवान् के प्रति प्रेम के ऑसुनो को धारा बह चली। उन्हे अपने रात्रि को किये गये अयोग्य निर्णय पर बहुत पश्चात्ताप हुआ। उन्होने भगवान् से कहा-'भन्ते !
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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