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२२४ ] जन सुबोध पाठमाला--भाग १ पाई ? क्या उस कष्ट से तुम्हारे विचार गृहस्थ वनने के हए ? क्या मुझसे यही कहने के लिए तुम मेरे पास आये हो ?' मेघ मुनि ने कहा-'हाँ ।'
मेघकुमार के पहले के दो भव
भगवान् ने तव उनका पूर्व भव सुनाना प्रारम्भ किया__'मेघ । तुम्हारे इस भव से तीसरे भव की बात है। तुम श्वेत
रङ्ग के, छह दॉत वाले, महल हायनियो के स्वामी, सुमेरुप्रभ नामक हस्तिराज थे। एक बार उष्ण ऋतु मे वृक्षो के आपस मे टकरान से वन मे आग लगी। तब तुम उससे बचने के लिए भागते हए थोडे पानी और अधिक कीचड वाले एक सरोवर मे पहुंचे। वचने और पानी पीने की इच्छा से तुम उसमे घुसने लगे। पर कीचड मे ही फँस गये। न पानी के पास पहुँच सके, न पुन तीर पर पहुँच सके। बहुत ही सङ्कट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
उस प्रमङ्ग से पहले तुमने अपने यूथ के एक छोटे बालक हाथी को निरपराध मार कर अपने हाथो-समूह से निकाल दिया था। वह उस समय वालक था और तुम युवा थे। इस समय वह युवा था और तुम वृद्ध थे। तुम्हारे प्रति उसके हृदय मे रहा हुआ पुगना वर तुम्हे देखकर जग गया। क्रुद्ध होकर उसने पुगना वर निकालने के लिए तुम्हे तीखे दांतो से बार-बार प्रहार करके घायल कर दिया। उससे तुम्हारे शरीर मे अत्यन्त वेदना हुई और पित्तज्वर उत्पन्न हो गया। उससे सात रात्रि मे मृत्यु प्राप्त कर तुम दूसरे भव मे पुन विध्याचल मे एक हथिनी के पेट से लाल रंग के चार दाँतवाले 'मेघप्रभ' नामक हाथी के रूप मे