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कथा-विभाग-४ श्री मेघ-कुमार (मुनि) [ २१७ में राजा या श्रेष्ठ मुनि बनने वाला पुत्र उत्पन्न होगा।' राजारानी को यह सुनकर बडी प्रसन्नता हुई। रानी यत्नपूर्वक अपने गर्भ का पालन करने लगी।
'मेघ' नाम का हेतु
गर्भ के तीसरे महीने मे, जब कि मेघ-वर्षा का काल नहीं था, तब रानी को ऐसा दोहला उत्पन्न हुआ कि 'वर्षाकाल का दृश्य उपस्थित हो और मैं महाराज श्रेणिक के साथ हाथी पर चढकर राजगृह के पर्वतो के पास वर्षाकाल का दृश्य देखू ।' यह दोहला पूर्ण होना असभव समझ कर रानी दिनो-दिन सूखने लगी।
महाराजा श्रेणिक को दासियो के द्वारा जब यह जानकारी हुई, तो वे बहुत चिन्तित हुए। अन्त मे श्रेणिक के ही पुत्र 'अभयकुमार' जो बडे बुद्धिशाली और राजा के प्रधानमन्त्री भी थे, उन्होने देव की सहायता से अपनी छोटी माता का यह असभव दोहला पूरा कराया।
गर्भकाल पूर्ण होने पर महारानी ने एक सर्वाग सुन्दर बालक को जन्म दिया। महाराजा श्रेणिक ने उसका जन्म बहुत उत्सव से मनाया और बारहवे दिन 'माता को अकाल मे मेघ आदि का दोहला आया था, इसलिए उसका नाम 'मेघकुमार' रखखा।
लग्न
अाठ वर्ष के हो जाने पर, महाराजा ने मेघकुमार को कलाचार्य के पास भेज कर, उन्हे ७२ कलाएँ सिखाईं। पश्चात्