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कथा-विभाग-३ महासती श्री चन्दनबालाजी [ २१५ चन्दनबालाजी-'क्या आपको कोई ज्ञान पैदा हुआ है ?' मृगावतीजी-'हाँ।'
चन्दनबालाजी - 'प्रतिपाति (नाश होने वाला) या अप्रतिपाति (अमर) ?'
मृगावतीजी-'अप्रतिपाति ।'
चन्दनबालाजी यह सुनते ही मृगावतीजी के चरणो मे गिर पड़ी। 'एक केवलज्ञान हो अमर ज्ञान है। वह जिन्हे उत्पन्न हुआ, उन केवलज्ञानी की मुझसे आशातना हुई। मैंने उन्हे उपालभ दिया। अहो कैसी भूल हुई ।' चन्दनबालाजी ने मृगावतीजी से बार-बार क्षमा-याचना की। इस प्रकार चन्दनबालाजी मे दूसरो पर अमुशासन के साथ स्वय के जीवन मे महान् विनय भी था।
मोक्ष
चन्दनबालाजी अन्त समय मे सभी कर्मों का क्षय करके मोक्ष पधारी।
॥ इति महासती श्री चन्दनदालाजो की कथा समाप्त ॥
शिक्षाएँ
१ पुण्य सदा का साथी नहीं। २. कर्त्तव्य से सच्चा नाम प्राप्त करो। ३ सेवा और कृतज्ञता सीखो। ४ भगवान् को भी कठिन तपश्चर्याएँ करनी पड़ी। ५. जीवन मे अनुशासन और विनय, दोनो सीखो।