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कथा-विभाग-३ महासती श्री चन्दनबालाजी [ २१३ बरसाई और चन्दना के शिर पर बाल बनाये। उसका काछ हटाकर उसे सुन्दर वस्त्र पहनाए तथा उसकी हाथ-पंरो की हथकडी-बेडी तोडकर उसे मूल्यवान आभूषण पहनाये। देवदुन्दुभि बजी हुई सुनकर और चन्दना के हाथो अभिग्रह फैला जानकर महाराजा महारानी सहित सहस्रो पुरजन भो वहाँ प्रा पहुंचे। सभी ने चन्दना की बहुत प्रशसा को।
जब महारानी को जानकारी हुई कि 'यह मेरो बहन की सौत की लडकी वसुमति है, तथा राजा ने जाना कि 'मेरी साली की लडकी है, तो उन्हे वहुत दुख हुप्रा कि 'इसकी ऐसो दशा हुई ।' उन्होने इसके लिए उससे बार-बार क्षमा याचना की और बहुत आग्रह करके उसे राज गसाद मे ले गये। फिर शतानीक ने दधिवाहन की खोज कराई और उनका राज्य उन्हे पुनः लौटा दिया।
चन्दनवाला अब शतानीक राजा के यहाँ कन्यायो के अन्त पुर मे रहने लगी। उसे अब वैराग्य हो चुका था। वह इसी प्रतीक्षा मे ससार मे रह रही थी कि 'जब भगवान् को केवल-ज्ञान उत्पन्न होगा, तब मैं दीक्षा ले लूंगी।' कुद्ध
दीक्षा उस समय के एक वर्ष बाद जब भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ, तब उसने राज्य-सुख को छोडकर कई स्त्रियो के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। वे भगवान् की सबसे बडी शिष्या हुई और उनकी शिष्याओ की ऊँची सख्या ३६,००० छत्तीस सहस्र तक पहुँची।
अनुशासन महासती श्री चन्दनबालाजी का अनुशासन बहुत अच्छा था। कौशाम्बी की ही बात है। उनके पास उनकी मौसी