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________________ २१२ ] जन सुवोध पाठमाला-भाग १ नैमित्तिको से पूछ कर अभिग्रह जानने का पूरा प्रयत्न किया, पर कार्य सफल नहीं हो सका। भगवान् अभिग्रह के लिए वूमते हुए २६वे दिन चन्दना के यहाँ पधारे। चन्दना को यह जानकारी थी कि 'भगवान् को अभिग्रह चल रहा है और अभिग्रह बहुत ही कठोर दिखता है, क्योकि कई प्रयत्न होने पर भी वह फल नही पा रहा है। अब लगभग छह मास पूरे होने जा रहे है।' अत वह सोचती थी कि ऐसा कठोर अभिग्रह मेरे हाथ से क्या फलेगा? परन्तु फिर भी जव भगवान् द्वार पर पधारे, तो उसने सूप मे रहे उडद के बाकुलो को दिखाते हुए कहा-भगवन् । यद्यपि ये आपको दान मे देने योग्य नहीं हैं, फिर भी यदि ये आपको कल्पते हो, तो इन्हे ग्रहण करे।' भगवान ने अवधि-जान से देख लिया कि 'मेरे अभिग्रह के सभी बोल इसमे मिल रहे है, तो उन्होने अपने हाथो को खोभा बनाकर (नाव की प्राकृति के वना कर) चन्दना के सामने किये। चन्दना ने अत्यन्त हर्ष के साथ भगवान् को उन सभी उडद के बाकुलो को बहरा दिये। अन्य मान्यतानुसार चन्दनवाला की आँखो मे भगवान् पधारे तब तक ऑसू नही थे। इसलिए अभिग्रह मे एक वोल कम देख कर एक वार भगवान् लौट गये थे। जव भगवान् को फिरते देखकर चन्दनवाला की आँखो मे आँसू आ गये, तव दुवारा भगवान् चन्दना के घर लौटे और अभिग्रह पूर्ण होने से आहार ग्रहण किया। दुःख का अन्त भगवान् का अभिग्रह चन्दनवाला के हाथो पूरा हुआ देखकर देवता चन्दनवाला पर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने देव-दुन्दुभि के साथ चन्दना के घर १२।। करोड़ सौनेयो की वृष्टि
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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