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________________ कथा विभाग-२ गणधर श्री-इन्द्रभूतिजी [ १६३ जानकार थे। चर्चा मे भी सदा ही उन्ही की विजय हुआ करती थी। यज्ञ-प्रसंग एक वार मध्य प्रपापा' नामक नगरी में 'सोमिल' ब्राह्मण ने यज्ञ करवाया ३ उसमे उसने श्री इन्द्रभूति आदि तीनो भाइयों को निमन्त्रित किया। तीनों अपने-अपने छात्रो के साथ यज्ञ में सम्मिलित हए। श्री व्यक्तभूति आदि आठ विद्वान् उपाध्यायो को वहाँ भी बुलाया गया था। ४. श्री व्यक्तभूति और ५ श्री सुवर्मा ५०० ५०० छात्रो के साथ आये। ६ श्री मण्डितपुत्र व ७ श्री मौर्यपुत्र ३५०-३५० छात्रो के साथ ग्राये। ८. श्री अकम्पित, ६. श्री अदलभ्राता, १०. श्रीमैतार्य व ११. श्री प्रभासजी ३००-३०० छात्रो के साथ आये।। . यज्ञ बहुत ठाट-बाट के साथ प्रारभ हुआ। उसमें सहस्रो लोग आये। भत्र पढ़े जाने लगे। आहुतियाँ दी जाने लगी। यज्ञ के धुएं ने नाकाश को घेरना प्रारम्भ किया। देव-दर्शन . इधर केवलज्ञान उत्पन्न होने पर श्री भगवान् महावीर स्वामी उसी नगरी के बाहर के महासेन नामक वन मे पधारे। वहाँ उनका बड़ा भारी समवसरण लगा। (सहस्रो-लाखों लोग उनके उपदेश के सुनने के लिए इकट्ठे हुए।) अगणित देव और इन्द्र भी उनकी वाणी सुनने के लिए सोमिल के यज्ञमण्डप की ओर से होते हुए भगवान् के समवसरण में आने लगे। उन देवो और इन्द्रो को अपने यज्ञ-मण्डप को ओर आते देख कर श्री इन्द्रभूति प्रादि ११ ही उपाध्याय ब्राह्मण बडे
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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