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फथा-विभाग-१ भगवान् महावीर
गोशालक को क्रोध
वहाँ से विचरते हुए भगवान् श्रावस्ती नगरी पधारे। छमस्थ अवस्था मे भगवान् के पास से निकला हुआ गोशालक भो तेजोलेश्या और अष्टाग महानिमित्त (भूत-भविष्य को प्रकट करने वाली विद्या) के बल पर अपने आपको सर्वज्ञ व तीर्थकर बताता हुया 'श्रावस्ती' नगरी मे आया।
गोचरी के लिए श्रावस्ती मे पधारे हुए गोतम स्वामी ने जब गोशालक का सर्वज्ञवाद तथा तीर्थकरवाद सुना, तो उन्होने गोचरी से लौटने पर भगवान् से गोशालक का पिछला सम्पूर्ण वृत्तान्त पूछा। भगवान् के द्वारा बताये जाने पर वह वृत्तान्त एक कान से दूसरे कान होता हुआ सारे नगर में पहुँच गया। इस समाचार को पाकर ऋद्ध हुए गोशालक ने गोचरी के लिए गाँव मे आये हुए 'पानन्द' नामक भगवान् के शिष्य से कहा "तेरे धर्माचार्य से जाकर कह दे कि यदि वह मेरी निन्दा करेगा, तो मैं उसे जलाकर भस्म कर दूंगा।"
आनन्दमुनि ने लौटकर भगवान् को गोशालक की कही बात सुनाई और पूछा--"क्या भगवन् । वह ऐसा कर सकता है ?" भगवान् ने कहा-'नही, वह तोथंकरो को जला नहीं सकता, कष्ट अवश्य दे सकता है।' उसके पश्चात् भगवान् ने सभी साधुनों को प्राज्ञा दी कि 'अभी गोशालक साधूनो के प्रति शत्रु-भाव अपनाए हुए है, अत उसके विषय मे कोई कुछ कहा-सुनी या चर्चा नही करे ।
गोशालक द्वारा मिथ्यावाद व मुनि-हत्या
इतने में गोशालक अपने संघ के साथ भगवान् के पास अाया और अपने को छुपाते हुए कहने लगा-"काश्यप !