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१७२ ] जन सुवोध पाठमाला-भाग १ बच्चो को भयभीत करता, कभी किसी की हँसी उडाता, कभी किसी की निन्दा करता, कभी किसी से' 'अरे-तुरे' करता और कभी स्त्रियो से छेडछाड भी करता था। अत: कई स्थानो पर वह राजकुमारो, कोटवालो तथा गाँव वालो के द्वारा पीटा जाता था। परन्तु अन्त मे भगवान् का सेवक आदि समझकर लोग उसे छोड देते थे।
एक बार उसने भगवान् से कहा : 'मैं तो पीटा जाता हूँ और आप कायोत्सर्ग मे ही खडे रहते हैं, अत: मैं आपके साथ नहीं रहूँगा।' यह कह कर वह चला गया। छह महीने तक वह स्वच्छन्द घूमता रहा। पर उसकी. उच्छृङ्खल और उद्दण्ड वृत्ति. से वह सर्वत्र पीटा जाता था। वहाँ उसे भगवान् के नाम पर भी कोई छुडाने वाला नही मिलता था। इससे वह हताम होकर पुन. भगवान् की सेवा मे आ गया।
तिल-पौधे संबंधी भविष्यवाणी सफल .
एक बार की बात है। शरद् ऋतु मे,भगवान् गोशालक के साथ सिद्धार्थ- गाँव से कूर्म गाँव जा रहे थे। मार्ग मे एक पत्र-फूल आदि सहित हरा-भरा सुन्दर तिल का पौधा देखकर गोशालक ने वन्दन-नमस्कार कर भगवान् से पूछा : १. इस पौधे मे तिल लगेंगे या नहीं तथा २. इस पौधे के सात फूल के जीव मरकर कहाँ जाकर उत्पन्न होगे ?' भगवान् ने उत्तर दिया : '१ इस पौधे मे तिल होगे' और २ ये सात फूल के जीव मरकर इस पौधे की एक फली मे सात तिल के रूप में उत्पन्न होगे।'
तव वह कुशिष्या भगवान् के इन वचनों पर श्रद्धा न करते हुए भगवान् को मिच्छावादी (भूठा) ठहराने के लिए वहाँ