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कथा-विभाग
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१. भगवान् महावीर
देवानन्दा की कुक्षि में
भारतवर्ष के बिहार-उडीसा प्रान्त मे ब्राह्मण कुण्ड नामक नगर था। वहाँ ऋषभदत्त नामक ब्राह्मण रहता था। वह वेद-पारगत और धनाढ्य भी था। उसकी देवानन्दा नामक सुरूपा और कुलीन भार्या थी ।
१०वे देवलोक से च्यवकर (उतर कर) भगवान महावीर स्वामी का जीव आषाढ शुक्ला ६ की रात्रि को देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ मे ग्राया। उस समय आधी नीद मे सुखपूर्वक सोती हुई देवानन्दा को ये चौदह स्वप्न आये-१ हाथी, २ वृषभ, ३ सिंह, ४ लक्ष्मी का अभिषेक, ५ दो रत्नमालाएँ, ६ चन्द्र, ७. सूर्य, ८ ध्वज, ६ कुम्भ, १० पद्मकमलयुक्त सरोवर, ११ क्षीरसागर, १२ विमान, १३ रत्त की राशि और १४. धुएं रहित अग्नि की शिखा। इन स्वप्नों को देख कर देवानन्दा जग गई। उसने अपने पति के पास जाकर ये आए हुए स्वप्न सुनाये। ऋषभदत्त ने उन पर बुद्धि से विचार करके कहा : तुम्हे स्वप्नो के फल मे 'एक पुत्र की प्राप्ति होगी, जो वेदपारगत और हमारे कुल का तिलक होगा ।