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जैन सुबोध पाठमाला-भाग १
सम्यक्त्व (समकित) के , बोल
सम्यक्त्व : जिनेश्वर भगवान् ने जो कुछ कहा, वही सत्य और
नि शक है-इस प्रकार अरिहन्त प्ररुपित तत्वो पर
श्रद्धा रखना।
पहला बोल-चार श्रद्धान । दूसरा बोल-तीन लिन। तीसरा बोल-दस विनय । चौथा बोल-तीन शुद्धि। पांचवां बोल-पांच लक्षण। छठा बोल-पांच दूषण। सातवा वोलपांच भूषण। पाठवाँ बोल-पाठ प्रभावक। नवमां बोल -छह प्रागार। दसवां बोल-छह यतना। ग्यारहवाँ बोल- छह स्थान । बारहवां बोल-छह भावना ।
ये सव मिलाकर ६७ बोल हुए। परिशिष्ट मे तेरहवां बोल : सम्यक्त्व की दस रुचि। चौदहवां बोल : सम्यक्त्व के पांच भेद । पन्द्रहवां बोल : सम्यक्त्व के पाठ प्राचार । सोलहवां बो : सम्यक्त्वी के तीन प्रकार ।
पहला बोल : 'सम्यक्त्व के चार श्रद्धान'
श्रद्धान : १. (जैसे पर्वतादि मे धूएँ को देख कर वहाँ अग्नि
होने का विश्वास होता है, उसी प्रकार) जिन कार्यो से 'इस पुरुष मे सम्यक्त्व है'-इस का विश्वास हो, उसे 'सम्यक्त्व का श्रद्धान' कहते हैं । अथवा २. जिन कार्यों से धर्म मे श्रद्धा उत्पन्न हो और धर्मश्रद्धा सुरक्षित रहे, उसे सम्यक्त्व का श्रद्धान कहते हैं।
१. परमार्थ संस्तव : परमार्थ का परिचय करे अर्थात् नव तत्वो का ज्ञान प्राप्त करे।