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________________ १३० ] जन सुबोध पाठमाला-भाग १ ६. दिशा परिमारण व्रत : इसमें श्रावकजी १ पूर्व, २ पश्चिम, ३ उत्तर, ४ दक्षिण, ५ ऊँची और ६ नीची-इन छह दिगायो की मर्यादा करते हैं। ७. जाभोग परिभोग परिमारण व्रत : इसमें श्रावकजी २६ बोल की मर्यादा करते है और पन्द्रह कर्मादान का त्याग अथवा मर्यादा करते है । ८. अनर्थ दण्ड विरमण व्रत : इसमे श्रावकजी अनर्थ दण्ड का त्याग करते हैं। ६. सामायिक व्रत : इसमें श्रावकी प्रतिदिन (या जितने दिन का नियम हो, उतने दिन) शुद्ध सामायिक करते हैं। १०. दिशावकाशिक व्रत : इसमें श्रावकी दिगावकाशिक पौषध करते हैं, सवर करते है, और १४ नियम चितारते है। ११ प्रतिपूर्ण पौषध व्रत : इसमें श्रावकजी अष्टमी, चतुर्दी, अमावस्या और पूर्णिमा को यो छह (या जितने दिन का नियम हो, उतने दिन) प्रतिपूर्ण पौषध करते हैं । १२ अतिथि सविभाग व्रत : इसमें श्रावकजी घर पर पधारे हुए साधु-साध्वियो को अन्न-पानादि १४ प्रकार का निर्दोष दान देते है। श्रावकजी के पहला, दूसरा, तीसरा, चौथा और पांचवाये पांच पत 'अणुव्रत' कहलाते हैं। छठा, सातवां और पाठवांये तोन व्रत गुणव्रत कहलाते हैं तथा नवमां, दसवाँ, ग्यारहवां और | वारह्वां-ये चार व्रत, शिक्षाक्त कहलाते हैं ।
SR No.010546
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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