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तत्त्व विभाग-नवां बोल : 'बारह उपयोग' [ ११५
चार दर्शन दर्शन : १. द्रव्यो मे रहे हुए सामान्य गुण को जानने की लब्धि
(शक्ति) तथा २. सामान्य गुण का उपयोग (जानना)।
१. चक्षु दर्शन : १. अॉख की सहायता से द्रव्यो मे रहे हुए सामान्य गुण को जानने की लव्धि (शक्ति) तथा २ सामान्य गुरण का उपयोग (जानना)।
२. अचक्षु दर्शन : १. कान, नाक, जोभ, स्पर्श तथा मन की सहायता से द्रव्यो मे रहे हुए सामान्य गुण को जानने की लब्धि (शक्ति) तथा २ सामान्य गुण का उपयोग (जानना)।
३ अवधि दर्शन और ४. केवल दर्शन : इन दोनो का अर्थ अवधि-ज्ञान और केवल-ज्ञान के अर्थ के समान है। अन्तर यह है कि विशेष गुण के स्थान पर सामान्य गुण कहना चाहिए।
इन मति-ज्ञानादि बारह मे से एक समय मे किसी एक का ही उपयोग रहता है, अर्थात् किसी एक से ही जानने का व्यापार चलता है, पर एक समय मे एक से अधिक का उपयोग नही रहता। किन्तु जानने की लब्धि (शक्ति) जीवो मे १२ मे से अनेक रहती हैं। एकेन्द्रिय मे मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान तथा अचक्षु-दर्शन तीन की सदैव लब्धि । शक्ति) रहती है तथा कभी मति-अज्ञान का उपयोग, तो कभी श्रुत-अज्ञान का उपयोग, । तो कभी अचक्षु-दर्शन का उपयोग- ये तीनो उपयोग भी मिलते
है। द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय मे मति-ज्ञान तथा श्रुत-ज्ञान मिलाकर पाँच लब्धि तथा पाँच उपयोग मिलते हैं। चतुरिन्द्रिय मे चादर्शन मिलाकर छह लब्धि तथा छह उपयोग मिलते है । देव नारक तथा पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च मे अवधि-ज्ञान, विभग-ज्ञान तथा अधिग्दर्शन मिलौकर नव लब्धि तथा नव उपयोग मिलते है। मनुष्य मे बारहो लब्धि तथा बारहो उपयोग मिलते हैं।