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तत्त्व विभाग-नवा बोल 'बारह उपयोग' [ ११३
१. आहार-पर्याप्ति शरीरादि के योग्य पुलों को ग्रहण करने वाली शक्ति।
२. शरीर-पर्याप्ति शरीर आदि वर्गणा के योग्य ग्रहण किये हुए पुदलो में से खल (नि सार) भाग को पृथक करने वाली
और शरीर वर्गणा के पुदेलो से सप्त धातु निर्मित करने वाली शक्ति। सप्त धातु के नाम -१ रस, २ रक्त (लोही), ३ मॉस, ४ मेद (चर्बी), ५ हड्डी, ६ मज्जा और ७ वीर्य ।
३. इन्द्रिय-पर्याप्ति सप्त धातुप्रो में से इन्द्रिययोग्य पुद्गलों को ग्रहण करके स्पर्शेन्द्रियादि रूप मे परिणत करने वाली शक्ति ।
४. श्वासोच्छवास-पर्याप्ति : प्रवास और उच्छवास योग्य वर्गणा के पुद्गलों को ग्रहण करके श्वास और उच्छ्वास रूप में परिणत करके (बदल करके) छोडने वाली शक्ति।
५. भाषा-पर्याप्ति : भाषा वर्गणा के योग्य पुद्गलों को ग्रहण करके भापा-रूप में परिणत करके छोड़ने वाली शक्ति ।
६. मनः पर्याप्ति • मनोवर्गणा के योग्य पुदलो को ग्रहण करके मन-रूप मे परिणत करके छोडने वाली शक्ति ।
इन छ पर्यातियो मे से तीन पारियाँ सभी (ससारी) जीवों को पूर्ण मिलती ही हैं। एकेन्द्रियो को पहली चार पूरी मिल सकती हैं। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को पहली पाँच पूरी मिल सकती हैं और पञ्चेन्द्रिय को छहों पूरी मिल सकती हैं।
नवाँ बोल : 'बारह उपयोग' पाँच ज्ञान, तीन अज्ञान, तथा चार दर्शन । योग १२ । उपयोग : द्रव्यो में रहे हुए सामान्य या विशेष गुण को जानना।
(जानने का व्यापार (प्रवृत्ति) करना)।