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तत्त्व-विभाग- पहला बोल 'चार गति' [ १०६
हो । और ४ भाव से, जिसके द्वारा अर्थ-रूप, संग्रह - रूप और क्रम-बद्ध होने के कारण थोडे परिश्रम से शास्त्र के मूलभूत तत्वो का ज्ञान हो ।
पच्चीस बोल का स्तोक (थोकड़ा) साथै
पहला बोल : चार गति । दूसरा बोल : पाँच जाति । तोमरा बोल : छह काय | चौथा बोल : पाँच इन्द्रिय । पाँचवाँ बोल. छह पर्याप्ति । नवमाँ बोल : बारह उपयोग । दसवाँ बोल : आठ कर्म । चौदहवाँ बोल : छोटी नव तत्व के ११५ भेद । अट्ठारहवाँ बोल : तीन दृष्टि । उन्नीसवाँ बोल : चार ध्यान । बाईसवाँ बोल . श्रावकजी के १२ बारह व्रत । तेईसवाँ बोल : साधुजी के पांच महाव्रत ।
पहला बोल : 'चार गति'
गति : पुण्य-पाप के कारण जीव की होने वालो अवस्था - विशेष । १. नरक गति : जिसमे जाकर महापापी जीव जन्म लेते हैं ।
२. तिर्यश्व गति : जिसमे जाकर सामान्य पापी जीव जन्म लेते हैं ।
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३. मनुष्य गति : जिसमे जाकर सामान्य पुण्यवान जीव जन्म लेते हैं ।
४. देव गति : जिसमे जाकर महा पुण्यवान जीव जन्म
लेते है |