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६६ ] जैन सुवोध पाठमाला--भाग १
१. जहाँ सन्त विराजते हों, वहाँ या उनके अभाव में २. जहाँ श्रावक सामायिकादि धर्म-क्रिया कर रहे हो या ३. करते हो, उस स्थान में सामायिक करे।- यदि ४. अपने घर मे सामायिक करना पडे, तो घर की रखवाली आदि के भाव उत्पन्न न हो, ऐसे एकान्त
स्थान में सामायिक करने का उपयोग रक्खे । प्र० · सामायिक किस समय करनी चाहिये ? उ० : यदि सामायिक एक से अधिक-कम बनती हो, तो
१ प्रातः उठते ही करे या २. भोजन से पहले तक सामायिक कर लेने का प्रयत्न रक्खे। यदि उस समय तक न बन सके, तो ३. सूर्यास्त से पहले ही चउ विहाहार (१. अगन, २ पान, ३. खाद्य, ४. स्वाद्य) या तिविहाहार (पानी छोड कर) का प्रत्याख्यान करके सायकाल प्रतिक्रमणादि के समय सामायिक करे। अथवा यदि यह भी अनुकूलता न हो, तो ४. जव भी अवसर मिले, तभी सामायिक करे। परन्तु जहाँ तक हो, किसी भी दिन को सामायिक क्रिया-रहित न जाने देने का प्रयत्न
करे। प्र० सामायिक का वेश कैसे पहने तथा उपकरण कैसे रक्वे ?
निरवद्य स्थान को देख-पूंजकर वहाँ अपना आसन लगावे। सासारिक वेश-कुरता, टोपी, पगडी, पेण्ट, पायजामा प्रादि--उतारे । एक लाग वाली धोती लगावें। (सतिजी के स्थान का प्रागार)। दुपट्टा लगाना हो, तो स्त्रियो के सामने निश्चित रूप से तथा अन्य समय में भी प्राय किसी भी कधे या वाहु को खुला न रखते हुए दुपट्टा लगावे। मुख-वत्रिका का प्रतिलेखन करके उसमे