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- पाठ २४-सामायिक के ३२ दोष [६३ ७ संशय ८ रोष अविनय,
१० अबहुमान-ये मनोदोष ॥१॥ १. अविवेक = सावद्य-निरवद्य आदि का विवेक न रखे। २ यशःकीत्ति = नाम, आदर-सत्कार आदि की इच्छा से सामायिक करे। ३. लाभार्थ = धन, पुत्र, स्त्री आदि के लाभ के लिए करे। ४ गर्व - सामायिक की शुद्धता, सख्या तथा अपने कुल आदि का गर्व करे। ५ भय = श्री सघ की निन्दा, समाज का अपवाद, राज का दण्ड, लेनदार की उपस्थिति आदि के भय से करे। ६ निदान : मोक्ष के अतिरिक्त अन्य फल की इच्छा से करे। ७. संशय = 'अब तक कुछ फल नही हुआ, अब क्या होगा?' आदि सामायिक के फल मे सशय करे। ८. रोष - रूठ-झगड कर सामायिक करें या सामायिक मे रागद्वेष करे। ६ अविनय = सामायिक तथा देव गुरु धर्म का विनय न करे। -१० अबहुमान = अति प्रेरणा से या परवश होकर करे, हृदय मे बहुमान न हो या न रखे।
वचन के १० दस दोष गाथा : १ कुवयरण २ सहसाकारे,
३ सछंद ४ संखेव ५ कलहं च । ६ विगहावि ७ हासो ८ ऽसुद्ध,
निरवेक्खो, १० मुरणमुरणा, दोसादस ॥२॥ हिन्दो छाया :
१ कुवचन . २ सहसाकार । ३ स्वच्छंद, ४ संक्षेप ५ कलह तथा।