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पाठ २२-नमोत्थुण : शकस्तव का पाठ [८६
किस शक्ति से ऐसा उपकार करते है ? अप्पडिहय = (क्योकि वे) अप्रतिहत (पर्वतादि से कही भी न रुकने वाले)। वरनाग - श्रेष्ठ ज्ञान (केवल ज्ञान तथा) दंसरणं - (केवल) दर्शन के। धराग = धारक हैं उन्होंने । ििवअछउनाएं-ज्ञानावरणीयादि चार कर्म नष्ट कर दिये है।
अद्वितीय उपकारी : अपने समान बनाने वाले जिरणारण = (स्वय आत्म-शत्रुओं को) जीते हुए। जावयारगं% (तथा दूसरों को भी) जिताने वाले। तिण्पारणं - (स्वयं ससारसमुद्र को) तिरे हुए। तारयारणं - (तथा दूसरो को भी) तारने वाले। बुद्ध रणं (स्वय) बोध पाये हुए। बीहयारणं - (तथा दूसरों को भी) बोध प्राप्त कराने वाले। मुत्तारणं - (स्वयं कर्मबन्धन से छूटे हुए। मोयगाणं - (तथा दूसरो को भी) छुडाने वाले (ऐसे) । सव्वन्नूरणं = सर्वज्ञ । सव्वदरिसीरणं = सर्वदर्शी।
अरिहत भगवान् कैसे स्थान को पधारे ? सित्र - शिव (उपद्रवरहित)। अयलं-अचल (स्थिर)। अर= अरुज (रोगरहित)। अरणंतं =अनत (अन्तरहित)। अवखयं = अक्षय (क्षयरहित)। अव्वाबाह = अव्याबाध (बाधारहित)। अपुरणरावित्ति- अपुनरावृत्ति (पुनरागमन रहित)। सिद्धि गइ = सिद्धि गति। नामधेयं = नाम वाले। ठारणं = स्थान को। संपत्तारणं प्राप्त हुए। (दूसरे मे)। संपाविउकामारणं पाने की इच्छा वाले (योग्यता वाले)। "जियभयारणं - (ऐसे) भय को जीतने वाले । जिणार - जिनको। नमो नमस्कार हो ।