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दिया और मेरी मति व बुद्धि कुछ निर्मल तथा विकसित को। प्रत्यक्ष मे विशेषतया श्री वर्धमान श्रमण सघ के उपाध्याय श्री १००८ श्री. हस्तीमलजी म० सा०, जिन्होंने इसका सूत्र विभाग आद्योपान्त पढ़ कर सुझाव व सम्मति दी, २ पूज्यपाद् श्री ज्ञानचन्द्रजी स० सा० की सम्प्रदाय के उपाध्यायकल्प बहुश्रुत श्री १००८ श्री समर्थसलजो म० सा० तथा १ श्री रतनलालजी डोसो जिन्हो ने इसका आद्योपान्त विहगावलोकन कर इसमे संशोधन दिये ५ तथा श्री सम्पतराजजी डोशो, जिन्होने मुख्यतः इसमे सुझाव दिये, वे भो इस ग्रन्थ की अच्छाइण के भागो हैं-एतदर्थ में उनका कृतज्ञ हूँ।
इसको जहाँ तक हो सका, जिन-वचन के अनुकूल बनाने का उपयोग रखने का प्रयास किया है। तथापि इसमे जिन वचन के विरुद्ध यदि कोई वचन लिखने में आया हो, तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।'
विद्वान् समालोचकों से प्रार्थना है कि वे इसमे रही त्रुटि और स्खलनाओं के प्रति मेरा व प्रकाशक का ध्यान आकर्षित करें।' जिससे इसमें भविष्य में परिमार्जन हो सके। इति शुभम् ।
शिक्षकों से:
छोटे बालकों को यह दो वर्ष में पढाना चाहिए। प्रथम वर्ष मै १ सूत्र-विभाग के १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९ १४ १५ तथा २५वाँ-ये बारह पाठ पढाने चाहिएँ । शेष सामायिक सूत्र मूल कंठस्थ करना चाहिये । २ तत्व-विभाग में पच्चीस बोल के दिये हुए बोल
. तीन :