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कानमुनिजी द्वारा तात्कालिक संयोजित विषय को कुछ समय लगाकर सम्पादित कर दें, जिससे १ शिविरार्थी बालको को सम्पादित ज्ञानशिक्षण मिल सके तथा २ अल्प काल में अधिक शिक्षण मिल सके। इसके अतिरिक्त यदि शिविर में अधिक बालक उपस्थित हो, तो ३ हम भी उस सम्पादित पाठ्यक्रम के आधार पर अध्यापकों द्वारा बालको को शिक्षण दे सके। ४ यदि अन्यत्र कोई ऐसा शिविर लगाना चाहे. तो वहाँ भी उसका उपयोग हो सके। ५ हमारी स्थानकवासी जैन कान्फरेन्स ने जो 'जैन पाठावलियाँ' प्रकाशित की हैं, वह उसे हमारे सघ से विचार और आचार द्वारा बहिष्कृत श्री सन्तबालजी द्वारा लिखवानी पड़ी हैं। यद्यपि उनका हमारे विद्वान् मुनिराजों द्वारा कुछ संशोधन अवश्य हुआ है, पर मूल से विकृत पुस्तको का पूर्ण सशोधन सम्भव नहों। उनके लिए तो नए लेखन को आवश्यकता है। अतः उनके स्थान पर यदि कोई आप द्वारा उन नवलिखित पुस्तकों को पढाना चाहे, तो भी पढा सके।
उनके अत्यन्त आग्रह के कारण वर्तमान में मेरी इस सम्बन्ध में योग्यता, रुचि और समय को कमो होते हुए भी इस 'सुबोध जैन पाठमाला - भाग १' को लिखा। फिर भी इससे 'इच्छित उद्देश्यो को पूर्ति हो सके यह भावना रखते हुए तदनुकूल मुझसे जितना शक्य हो सका, उतना पुरुषार्थ किया है।
इस ग्रंथ मे जो-कुछ अच्छाइयाँ हैं. वे सब १ देव, २ गुरु और ३ धर्म को कृपा का फल है-जिन्हो ने क्रमश १. निर्ग्रन्थ प्रवचन (जैन धर्म) प्रकट किया, मुझे धर्म का साहित्य और शिक्षण
: दो :