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१२ जैन सुदीव पाठमाला--भाग १ उ० : चविंशतिस्तव का पाठ। प्र० • इसे चतुर्विंशतिस्तव का पाठ क्यों कहते हैं ? उ : इससे चौवीस तीर्थंकरों की स्तुति की जाती है, इसलिए। प्र० • 'लोक का उद्योत करने वाले का भाव क्या है ? उ० : विश्व का ज्ञान कराने वाले। प्र० : यहाँ कीर्तन किसे कहा है ? . उ० : मन से १. नाम स्मरण करने को और २. गुण-स्मरण
करने को। प्र० । यहाँ वन्दन किसे कहा है ? उ० : मुख से १. नाम-स्तुति करने को और २. गुण-स्तुति करने
को। प्र० : यहाँ पूजन किसे कहा है ? उ. : पूज्य मानकर (स्मरणीय और स्तवनीय मानकर) काया
(पचाग नमाकर) से नमस्कार करना । प्र० : क्या तीर्थकरो की फूलो से पूजा करना 'पूजन' नहीं
कहलाता? . उ० : नहीं। तीर्थंकरादि के सामने जाते हए पहला अभिगमन
है -सचित्त का त्याग। जव सचित्त को लेकर तीर्थकरादि के सामने जाने का भी निषेध है, तव सचित्त
फूलो से उनकी पूजा करना 'पूजन' कैसे कहला सकता है । प्र० : कीर्तन तथा वन्दन से क्या लाभ होता है ? उ० : १. ज्ञान बढता है। जसे, गुणों के स्मरण तथा स्तुति
से यह ज्ञान होता है कि कौनसे गुणों वाला देव सच्चा देव हो सकता है ? तथा नामो के स्मरण तथा स्तुति से यह ज्ञान होता है कि ऐसे गणों वाले सच्चे देव कोन