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पाठ २१-लोगस्स प्रश्नोत्तरी
२. श्रद्धा बढती है। जैसे, इन गुणों वाले देव ही सच्चे देव हैं तथा इन नामो वाले देव ही सच्चे देव हुए। ३. नये पाप-कर्म बँधते हुए रुकते हैं। क्योकि मन में स्मरण चलने से मन में आहारादि की सज्ञाएँ उत्पन्न नही होती तथा वचन से स्तुति होती रहने पर वचन से स्त्री आदि विकथाएँ नही होती। । । । ४ पुण्य बंधते हैं। क्योकि स्मरण मन का शुभ योग है तथा स्तुति वचन का शुभ योग है। ' ५. पुराने पाप-कर्म क्षय होते हैं। क्योकि स्मरण तथा
स्तुति, स्वाध्याय तथा धर्म-ध्यान-रूप हैं। प्र० : लोगस्स मे तीर्थंकरो को, जो अरिहन्त हैं, उन्हें सिद्ध भी
क्यो कहा? उ० : १. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और
अन्तराय-ये आठ कर्मों मे चार मुख्य कर्म हैं। इनको नष्ट कर देने से तीर्थंकरो का आत्म-कल्याण का काम प्राय सिद्ध हो चुका है, इसलिए। २. वर्तमान की
अपेक्षा तो वे सिद्ध हैं ही। प्र० ; क्या तीर्थकर किसी पर प्रसन्न होते हैं,? उ० : नहीं। क्योकि वे राग-द्वेषरहित होते हैं। प्र० : तब 'तीर्थकर मुझ पर प्रसन्न हो'-ऐसी प्रार्थना क्यो की . . जाती है ? उ० : इसलिए कि ऐसी प्रार्थना से हम में मोक्ष-प्राप्ति की , योग्यता आती है और हम मे मोक्ष-प्राप्ति की योग्यता
आना ही 'तीर्थंकरो का प्रसन्न होना' माना गया है।