________________
(५७)
सद्भाव द्रव्य शरीर से ही सम्बन्ध रखता है। यहां पर भाववेद की कोई मुख्यता नहीं है। पर्याप्त अपर्याप्त तो शरीर रचना को पूर्णता अपूर्णता है वह भागवेद में घटित हो ही नहीं सकती है यही वर्णन हमने अनेक सूत्रों एवं उनकी धवल टोका से स्पष्ट किया है।
मनुष्यगति और ६ ३ वें सूत्र पर विचार
जिस प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त के सम्बन्ध से नरकगति दियंचगति का वर्णन किया गया है उसी प्रकार यहां पर सूत्र क्रमबद्ध एवं प्रकरणगत मनुष्यगति का वर्णन भी पथाप्ति अपर्याप्त से सम्बन्धित गुणग्थानों के सद्भाव से किया जाता है
मनुस्सा मिच्छाइट्ठि साससम्माट्ठ असं जर सम्माई छुट्टा सिया पत्ता सिया अपत्ता ।
(सूत्र ८६ पृष्ठ १६५ धवल)
सम्मा मिश्रा इट्टि - पंजा संज- संजट्ट से यमा पत्रता । (सूत्र ६० पृष्ठ १६५ धवल)
ये दोनों सूत्र मनुष्यों के पर्याप्त अपर्याप्त संबधी गुणस्थानों का कथन करते हैं। इनमें पहले सूत्र द्वारा यह बताया गया है कि मिध्यादृष्टि सासादन और असंयत सभ्यम्टष्टि इन दोनों गुणस्थानों में मनुष्य अपर्याप्त भी हो सकते हैं और पर्याप्त भी हो सकते हैं । दूसरे सूत्र में यह बताया गया है कि सम्बमिध्यादृष्टि, संबता -