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जीवों पयंत मन को छोड़कर शेष पांच पर्याप्तियां होती है। तथा भाषा और मन इन दो पर्याप्तियों को छोड़कर बाकी चार पर्याप्रियां न्द्रिय जीवों के होती है। इन सबों के जैसे नियन पर्याप्तियां होती हैं वैसे ही प्रायोपियां भी होती हैं।
इन छह पर्याजियों की समाप्ति चौथे गुणस्थान तक ही भूतल पुग्दन्त ने बताई है। इसका खुलासा धवलाकार ने अनेक शङ्कायें उठाकर यह कर दिया है कि चौथे गुणस्थान से ऊपर पर्यायां इसलिये नहीं मानी गई हैं कि उनकी समाप्ति चौये तक ही हो जाती है अर्थात चौथे गुणस्थान तक ही जम्म मरण होता है इसी बात की पुष्टि में यह बात भी कही गई कि सम्यक मथ्याष्टि तीसरे गुणस्थान में भी ये पर्याप्तियां नहीं होती है क्योंकि उस गुणस्थान में अपर्याप्तकाल नहीं है पर्थात तीसरे मिश्र गुणस्थान में जीवों का मरण नहीं होता है। इस कथन से यह मष्ट है कि यह पर्याजियों का विधान और विवेचन द्रव्य शरीर से ही सम्बन्ध रखता है। __ यदि द्रव्य शरीर और जन्म मरण से सम्बन्ध इन पर्याप्तियों का नहीं माना जावे तो चौथे गुणस्थान तक ही सूत्रकार ७१ सूत्र द्वाग इनकी समाप्ति नहीं बताते किन्तु १३३ गुणस्थानतक बताते । इसी प्रकार संधीजीव तक मनको छोड़कर पांच गैर एकेन्द्रिय जीव में भाषा और मन दोनों का प्रभाव बताकर केवल पार पर्याप्तियों का विधान सूत्रकार ने किया। इससे भी स्पष्ट कि