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(३०) लक्षण को स्पष्ट करते हुए पवनाकार कहते हैं कि
माहार-शरोरेभियोच्छवासनिःश्वास-भाषामनसां निष्पत्तिः पर्वामिताच षट् भवन्ति ।
अर्थात माहार, शरीर, इंद्रिय, उच्छवासनि:श्वास, भाषा पौर मन इन छहकी उत्पत्ति होना ही पयोति है ये पर्याप्तयां छह होती है। इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि यह पर्याप्तियों का वर्णन और उनमें गुणस्थानों का समन्वय द्रव्य शरीर से हो सम्बन्ध रखता है। भाववेद में इन पर्याप्तियों की उत्पत्ति का कोई सम्बन्ध नहीं है। हां पूर्ण शरीर और अपूर्ण शरीर क सम्बन्ध से भाववेद भी भाधार माधेय रूप से घटित किया जाता है परन्तु इन पयोतियों का मूल द्रव्य शरीर की उत्पत्ति और प्राप्ति है। अतः इन पर्याप्तियों के सम्बन्ध से जो भागे के सूत्रों में कथन है वह सब द्रव्य शरीर का हो है इसका भी स्पष्टीकरण नीचे के सूत्रों से होता हैपरिणमिच्छाइटिप्पलि जाव भसंजद सम्माहित । सूत्र ७१ पंच पजतोमो पंच अपञ्जतीयो सूत्र ७२ । बोहनियमडि जाव अस रिण पचिदियात्ति। सूत्र ७३ पत्तारि पजत्तीभो पत्तारि पब्बतीयो। सूत्र ७४ एइंपियाणं सूत्र ७५ (पृष्ठ १५६-१५७ धवल)
अर्थ-बह सभी-छहों पर्यामियां संझी मिध्यादृष्टि गुणस्थान तक होती है। पथा द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर मी पंचेन्द्रिय