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जी महाराज भी विशेष चिन्तित हो गये हैं, जो कि आगम रक्षा की दृष्टि से प्रत्येक सम्यक्स्व-शाली धमोत्मा का कर्तव्य है। जिन को इस सजद पर के हटाने को चिंता नहीं है उन को दृष्टि में फिर तो श्वेताम्बर और दिगम्बर मतों में भी कोई मौलिक भेद प्रतीत नहीं होगा जैसे कि प्रो० हीरा जाजा जी को दृष्टि में नहीं है।
यहां पर इतना स्पष्ट कर देना भी आवश्यक समझते हैं कि जितने भी भाव-पक्षी (जो सजद पद सूत्र में रखना चाहते हैं ) विज्ञान हैं, वे सभी द्रव्य स्त्री को मोक्ष होना सर्वथा नहीं मानते हैं, और न वे श्वेताम्बर मत को मान्यता से सहमत हैं, उनका कहना है कि सूत्र में संयत पद द्रव्य वेद की अपेक्षा से नहीं किन्तु भाव भेद की अपेक्षा से रख लेना चाहिए। परन्तु उनका कहना इस लिये ठीक नहीं है कि जो भाव वेद की अपेक्षा वे लगाते हैं। वह उस सूत्र में घटित नहीं होती है । वह सूत्र तो केवल द्रव्य स्त्री के ही गुणस्थानों का प्ररूपक है, वहां संयत पत्र का जुड़ना दिगम्बर सिद्धान्त का विघातक है, आगम का सबंधा लोपक है। वे जो गोमट्टसार की गाथाओं का प्रमाण देते हैं ते सब गाथाएँ भी द्रव्य निपरूक हैं। वे उन्हें भी भाव निरूपक बताते हैं। परन्तु तैसा उनका कहना मूल ग्रन्थ और टीका ग्रन्थ दोनों से सर्वथा बाधित है। यह बात ऐसी नहीं कि जो लम्बे चौड़ प्रमाण शून्य लेख लिखे जाने से अथवा गुणस्थान मार्गेणा अनुयोग, चूर्णिसूत्र