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पशा में परम शुख्मुिनि धर्म एवं मोक्ष पात्रना, बिना बात के भी सर्वत्र लिने खगेगी अपवा वास्तव में कहीं भी नही रहेगी बेखब मनपस सिन्द के सूत्र में सखद पद जोग देने से होने वाले हैं। फिर तो सिदान्त शाब भी दिगम्बराचार्यों को सम्पति नही मानी जायगी। अतः इस सिद्धान्त विषात की पिता सेहोहम को दिगम्बर जेन सिदान्त दर्पण (प्रथम भाग) नाम का ट्रेक्ट लिखना पड़ा था जो कि मुद्रित होकर सर्वत्र भेवा जा चुकीबोर माज इस ट्रैक्ट को लिखने के लिये भी वाय होना पड़ा है। श्री मान पूज्य शुल्लक सूरि सिंह जी महाराज श्री मान विवर १० राम प्रसाद जी शास्त्री भी इसी चिंता वश लेख पईक्ट लिखने में प्रयत्नशीबान चुके हैं। और इसी चिंता बरा बम्बई की धर्मपरायण पसायत एवं वहां के प्रमुख कार्यकर्ता श्री. सेठ निरखननास जी, सेठ चांदमल जी वक्शी सेठ सुन्दर बाल जी अध्यक्ष पचायत प्रतिनिधि राय बहादर सेठ जुहार मल मुख पद जी सेठ ननसुलाल जी काला, सेठ परमेष्ठी पास बीमादि महानुभावहाय से लगे हुए है, कों ने मोर बम्बई पापत ने इन समस्त विशाल ट्रैक्टों के छपाने में और उभय पक्ष
विनों को बुलाकर लिखित विचार ( शाखार्थ ) कराने में मानसिक, शारीरिक एवं पार्थिक सब प्रकार की कि सगाई, इसके लिये इन सबों का जितना पामार माना जाय सपबोड़ है। अधिक लिखना व्यर्थ है इसी सब्जद पद की चिन्ता में पान्य, चारित्रमावर्ती, परमपूज्य श्री १०८ मा शान्तिसागर